आधुनिक विज्ञान मतानुसार -

कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने १६६५ ई० में किया। १८३९ ई० में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी सजीवों का शरीर एक या एकाधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

सजीवों की सभी जैविक क्रियाएँ कोशिकाओं के भीतर होती हैं। कोशिकाओं के भीतर ही आवश्यक आनुवांशिक सूचनाएँ होती हैं जिनसे कोशिका के कार्यों का नियंत्रण होता है तथा सूचनाएँ अगली पीढ़ी की कोशिकाओं में स्थानान्तरित होती हैं।[2]

कोशिकाओं का विधिवत अध्ययन कोशिका विज्ञान (Cytology) या 'कोशिका जैविकी' (Cell Biology) कहलाता है।

इसके (कोशिका)भीतर निम्नलिखित संरचनाएँ पाई जाती हैं:-

(1) केंद्रक एवं केंद्रिका

(2) जीवद्रव्य

(3) गोल्गी सम्मिश्र या गोल्गी यंत्र

(4) कणाभ सूत्र

(5) अंतर्प्रद्रव्य डालिका

(6) गुणसूत्र (पितृसूत्र) एवं जीन

(7) राइबोसोम तथा सेन्ट्रोसोम

(8) लवक


वैदिक साहित्यो में विस्तृत ज्ञान -

वृक्ष आयुर्वेद इसके लेखक है महामुनि पाराशर। इस ग्रंथ में जो वैज्ञानिक विवेचन है, वह विस्मयकारी है। इस पुस्तक के ६ भाग हैं- (१) बीजोत्पत्ति काण्ड (२) वानस्पत्य काण्ड (३) गुल्म काण्ड (४)वनस्पति काण्ड (५) विरुध वल्ली काण्ड (६) चिकित्सा काण्ड।


आपोहि कललं भुत्वा यत्‌ पिण्डस्थानुकं भवेत्‌।

तदेवं व्यूहमानत्वात्‌ बीजत्वमघि गच्छति॥

अर्थात -

पहले पानी जेली जैसे पदार्थ को ग्रहण कर न्यूक्लियस बनता है और फिर वह धीरे-धीरे पृथ्वी से ऊर्जा और पोषक तत्व ग्रहण करता है। फिर उसका आदि बीज के रूप में विकास होता है और आगे चलकर कठोर बनकर वृक्ष का रूप धारण करता है। आदि बीज यानी प्रोटोप्लाज्म के बनने की प्रक्रिया है जिसकी अभिव्यक्ति बीजत्व अधिकरण में की गई है।


पत्राणि तु वातातपरञ्जकानि अभिगृहन्ति।‘

यह स्पष्ट है कि वात कार्बन डाय आक्साइड व सूर्य प्रकाश  क्लोरोफिल से अपना भोजन वृक्ष बनाते हैं। इसका स्पष्ट वर्णन इस ग्रंथ में है।


विशेष -

सन्‌ १६६५ में राबर्ट हुक ने माइक्रोस्कोप के द्वारा जो वर्णन किया उससे विस्तृत वर्णन महर्षि पाराशर हजारों वर्ष पूर्व करते हैं। वे कहते हैं, कोष की रचना निम्न प्रकार है-


(१) कलावेष्टन (cell wall)


(२)रंजकयुक्त रसाश्रय (plastids)


(३) सूक्ष्मपत्रक (ribosome and myocardial)


(४) अण्वश्च (nucleus)