‘भारत’ शब्द मिलकर बना है ‘भा’ और ‘रत’ से. ‘भा’ का अर्थ है प्रकाश और ‘रत’ का अर्थ है लगा हुआ. अर्थात जो अपने ज्ञान के प्रकाश को चारों तरफ फैलाने में लगा हुआ है. अनादि काल से ही भारतीय ज्ञान परम्परा और भारतीय संस्कृति समूचे विश्व को अपने ज्ञान की आभा से प्रकाशित करती आई है. भारतीय विज्ञान संहिताएं और गणित के सिद्धांत दुनिया भर में अध्ययन का केंद्र रहे हैं. इसी ज्ञान परम्परा का सिंहावलोकन करते हुए महान गणितज्ञ आर्यभट व उनके कार्यों पर दृष्टिपात करें.

आर्यभट की टीकाएं
महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभटीय’ में 120 सूत्र दिए. जिन्हें ‘आर्यभट की टीकाएं’ कहा जाता है. आधुनिक विज्ञान के कई सूत्र इसमें पहले ही बता दिए गए थे. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, पाई का सटीक मान, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की व्याख्या, समयगणना, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित आदि के कई सूत्र व प्रमेय आधुनिक विज्ञान से कई वर्षों पहले हमें आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ में मिलते हैं.

1. पृथ्वी का घूमना

अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।।
(आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 9)

अर्थ: जिस प्रकार से नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है तो उसे लगता है कि पेड़-पौधे, पत्थर और पर्वत आदि उल्टी गति से जा रहे हैं. उसी प्रकार अपनी धुरी पर घूम रही पृथ्वी से जब हम नक्षत्रों की ओर देखते हैं तो वे उल्टे दिशा में जाते हुए दिखाई देते हैं. इस श्लोक के जरिए आर्यभट ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूमती है.

महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभटीय’ में 120 सूत्र दिए. (फोटो- वीकीपीडिया)

2. पाई का मान

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥
(आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 10)

अर्थ: 100 में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर 62000 जोड़ें. इस नियम से 20000 परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है.
(100 + 4) x 8 +62000/ 20000= 3.1416
इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात (2πr/2r) यानी 3.1416 है, जो पांच महत्वपूर्ण आंकड़ों तक बिलकुल सटीक है.

पाई का मान आर्यभट प्राचीन काल में ही बता चुके हैं.

3. त्रिभुज का क्षेत्रफल

त्रिभुजस्य फलशरीरं समदलकोटि भुजार्धसंवर्गः
(आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 6)

अर्थ: किसी त्रिभुज का क्षेत्रफल, लम्ब के साथ भुजा के आधे के (गुणनफल के) परिणाम के बराबर होता है.

4. सूर्यग्रहण-चंद्रग्रहण

चंद्रो जलमर्को अग्निर्मृद भूश्छयापी या तमस्तद्धी।
छादयति शशि सूर्यम् शशिनं महती च भूच्छाया।।
(आर्यभटीय, कालक्रियापाद, श्लोक 37)

अर्थ: चन्द्रमा जल स्वरुप है, सूर्य अग्निस्वरुप है और भूमि मृत्तिकामय है। भूमि की छाया तम है अर्थात् अंधकार है। सूर्य ग्रहण में चन्द्रमा सूर्य को आच्छादित कर लेता है और चन्द्रग्रहण में पृथिवी की छाया चन्द्रमा को ढक लेती है।



6- सूर्योदय-सूर्यास्त

भूमि गोलाकार होने के कारण विविध नगरों में रेखांतर होने के कारण अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग समय पर सूर्योदय व सूर्यास्त होते हैं।


 इसे आर्यभट्ट ने ज्ञात कर लिया था, वे लिखते हैं-

उदयो यो लंकायां सोस्तमय: सवितुरेव सिद्धपुरे।
मध्याह्नो यवकोट्यां रोमक विषयेऽर्धरात्र: स्यात्‌॥
(आर्यभट्टीय गोलपाद-श्लोक13)

अर्थात्‌ - जब लंका में सूर्योदय होता है तब सिद्धपुर में सूर्यास्त हो जाता है। यवकोटि में मध्याह्न तथा रोमक प्रदेश में अर्धरात्रि होती है।

7-वृत्त का क्षेत्रफल


समपरिणाहस्य अर्धं विष्कम्भ अर्धहतं एव वृत्तफलम् ।

       (आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 7)

अर्थ-परिधि का आधा, अर्ध-व्यास (अर्थात त्रिज्या) से गुणा किया जाता है,निश्चित रूप से एक वृत्त का क्षेत्रफल देता है"


स्रोत: आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’