पूरे वेद में वैज्ञानिक बाते है कुछ लोग बेवजह ही वेदों को अवैज्ञानिक बोलते है उम्मीद है उन वामपन्थी लोगो को यह पढ़कर थोडा ज्ञान मिलेगा :-
1- “विश्वस्य दूतममृतम्॰” ( यजुर्वेद :-15.33)
अर्थात् - ऊर्जा संसार का अमर दूत है ।
विज्ञान भी यही कहता है की ऊर्जा को खत्म नहीं किया जा सकता उसे केवल परवर्तित किया जा सकता है।
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2-“शकमयं धूमम् आरादपश्यम्…” (ऋग्वेद.1.164.43)
अर्थात् - सूर्य की चारों ओर शक्तिशाली गैस फैली हुई है ।
अब इस बात को आधुनिक विज्ञान ने साबित कर दिया
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3-“श्रुधि श्रुत्कर्ण वह्निभिः॰” (ऋग्वेद.1.44.13)
अर्थात्- विद्युत् में श्रवण शक्ति ( तरंगीय शक्ति ) विद्यमान है ।
विज्ञान भी यही मानता है की विद्युत् में होती विद्युतीय चुंबकीय तरंग होती है।
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4-“अरण्यो निहितो जातवेदा:॰” (ऋग्वेद.3.29.2)
अर्थात् - दो लकड़ियों को रगड़ कर अग्नि का आविष्कार किया जाता है ।
विज्ञान भी मानता है की दो सूखी लड़कियों को आपस में घिसे तो घर्षणबल के कारण आग लग जाती है
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5-“सूरात् अश्वं वसवो निरतष्ट॰” (ऋग्वेद.1.163.2)
अर्थात् - सूर्य से अश्व शक्ति वा सौर ऊर्जा को निकालो।
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6-“चकृषे भूमिं प्रतिमानं”…(ऋग्वेद.1.52.12)
अर्थात् - सूर्य भूमि को आकर्षित किया हुआ है ।
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7- यदा सूर्य्यममुं दिवि शुक्रं ज्योतिरधारयः ।
आदित्ते विश्वा भुवनानी येमिरे ।।३।। ( 6/1/6/5)
अर्थात :- हे परमेश्वर ! जब उन सूर्य्यादि लोकों को आपने रचा और आपके ही प्रकाश से प्रकाशित हो रहे हैं और आप अपने सामर्थ्य से उनका धारण कर रहे हैं , इसी कारण सूर्य और पृथिवी आदि लोकों और अपने स्वरूप को धारण कर रहे हैं । इन सूर्य आदि लोकों का सब लोकों के साथ आकर्षण से धारण होता है ।
Note :- इस मन्त्र में भी है खगोलीय पिंडों (celestial body) जैसे पृथ्वी ,चंद्रमा ग्रह आदि को आकर्षण के अधीन माना है
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8-“प्रसोमासो विपश्चितो अपां न यन्ति ऊर्मयः” (ऋग्वेद.9.33.1)
अर्थात् - चन्द्रमा के आकर्षण से समुद्र की लहरें ऊपर उठती हैं।
विज्ञानं भी मानता है चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव के कारण ही समुद्र में ज्वार-भाटा की घटना घटित होती है
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9-"आयं गौः पृश्नि॑रक्रमी॒दस॑दन् मा॒तरं॑ पु॒रः। पि॒तरं॑ च प्र॒यन्त्स्वः" (यजुर्वेद-3.6)
अर्थात् -पृथ्वी अंतरिक्ष में अपनी कक्षा में अपने पर मौजूद पानी के साथ घूमती है। यह अपने पिता सूर्य के चारों ओर घूमती है।
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