वेदों में इसका सटीक ज्ञान -

ऋग्वेद के प्रथम मंडल में दो ऋचाएं है-


मनो न योऽध्वन: सद्य एत्येक: सत्रा सूरो वस्व ईशे( 1-71-9)

अर्थात् - मन की तरह शीघ्रगामी जो सूर्य स्वर्गीय पथ पर अकेले जाते हैं।


("तरणिर्विश्वदर्शतो ज्योतिकृदसि सूर्य विश्वमाभासिरोचनम्")( 1.50.4)

अर्थात् - हे सूर्य, तुम तीव्रगामी एवं सर्वसुन्दर तथा प्रकाश के दाता और जगत् को प्रकाशित करने वाले हो।


योजनानां सहस्रे द्वे द्वेशते द्वे च योजने।

एकेन निमिषार्धेन क्रममाण नमोऽस्तुते।।

अर्थात् - आधे निमेष में 2202 योजन का मार्गक्रमण करने वाले प्रकाश तुम्हें नमस्कार है।


इसमें 1 योजन- 9 मील 160 गज

अर्थात् 1 योजन- 9.11 मील

1 दिन रात में- 810000 अर्ध निषेष

अत: 1 सेकेंड में - 9.41 अर्ध निमेष


इस प्रकार 2202 x 9.11- 20060.22 मील प्रति अर्ध निमेष तथा 20060.22 x 9.41- 188766.67 मील प्रति सेकण्ड। आधुनिक विज्ञान को मान्य प्रकाश गति के यह अत्यधिक निकट है।